Tuesday, July 14, 2009

रक्तबीज

(हिन्दी)
अहिस्ता मत चलो

अहिस्ता मत चलो
दौडो
अब कुछ भी सोचने का समय नहीं रहा
अनाज से भरी मालगाड़ी
सौंप सी सिग्नल पर खड़ी है
उसकी पुँछ पकड़कर
जोर से घुमाओ और पटक दो

सहस और तेज गति
बिना हथियारों के भी
इसी के सहारे तुम विषधर मरते रहे हो

अहिस्ता मत चलो
दौडो-
ज्यादा सोचना भय को निमंत्रण देना है
और धीरे चलना अवसर चूक जाना

मैं जानता हूँ तुम्हारे हाथ मैं कोई झन्डा नही है
भूखे और असहाय आदमी को
किसी झन्डे की जरूरत भी नहीं होती
अपने उस साथी की
तार तार फटी, खून से रंगी कमीज़ को
एक बांस मैं लपेट ऊंचा उठा लो
जिसे कल अकेले वैगन लूटते समय
गोली मार दी गयी थी

अहिस्ता मत चलो
दौडो
सब एकसाथ मिलकर
दौडो,
नहीं तो मालगाड़ी राजधानी पहुँच जायेगी
और लौटने पर उन्हें अपनी झोपडियों मैं
बच्चों और वृद्धों की लाशें ही मिलेंगी


सर्वेश्वर दयाल सक्सेना


(तेलुगु)

माँ


माँ ....
तुम क्यों रोती हो?

क्यों कराहती हो
उस कब्र पर ?
तुम्हारा बेटा वहां नहीं है

मुड़कर देखो !
वह कब का
अपने लोगों के साथ एक हो गया ही

-शिवसागर
(आंध्र जेल)

(पंजाबी)

न्यायकार

उसका गंजापन
चमकता था लोहे के टोप की तरह
जब देखता था वह
सरक जाता था चश्मा एक ओर
एक ओर झुके पलड़े वाले तराजू की तरह

उसके मुंह से
भुनती खीलें उछल रही थीं
एक खील उछली, चुभा गयी मेरी आँख
"तीन साल बामुशक्कत ।"



अमरजीत चंदन
(अमृतसर जेल)

(बांग्ला)

बर्दाश्त मत करो

जब तक
बिना न्याय के
न्याय के नाम पर
न्याय का उपहास होता हो
इस देश के जेलखानों मैं
एक भी आदमी कुत्ते सियार की तरह यंत्रणा पाटा हो
तब तक
बर्दाश्त मत करो

इस देश में
लोकतंत्र है,
व्यक्ति स्वाधीनता है,
शिक्षा, संस्कृति और सभ्यता है,
कुछ भी है
तुम सब बिल्कुल भी बर्दाश्त मत करो

मनुष्य
और मनुष्यता का
इतना बड़ा अपमान!


-वीरेन्द्र चट्टोपाध्याय

(पंजाबी)

नाच

मजदूरन तवे पर
दिल पकाती है
चाँद टहनी में से हँसता है
छोटे बेटे को पिता
बैठ कर बहलाता है
कटोरी बजाता है
और बेटा दूसरा तब
कमधिन्ने के घुंघरू खनकाता है
और नाचता है
यह गीत नहीं मरते
दिलों से नाच मरते
हैं

-
लाल सिंह दिल

तेलुगु
पुनर्जन्म
मेरी परछाईयों में विचारों का ताप
नष्ट करने के लिए
मेरे पीछे लगी है पुलिस
जब मैं निरपराध भावः से भी
आकाश की ओर देखता हूँ
वे मेरी नज़रें भाँपते हैं।
तलाशते हैं मेरे पदचिन्हों में
मेरे क्रांति गीतों की सामरिक चालें
और धूल की प्रयोगशालाओं में
परिक्षण के लिए भेजते हैं ।

वे चाहते हैं बुझाना
सरे जहाँ के इंसानी चिराग को
जो हमको आपको उजाला देता है।
वे सडांध हटाते नहीं
जिसे देखने से मैं नफरत करता हूँ
बल्कि मेरे दीदे निकालने की कोशिश करते हैं।

जब मैं बच्चों को चूमता हूँ
तो वे चाकू से उसकी नमी तक को
खरोंच लेने की कोशिश करते हैं
मेरी आवाज़ तक अपराध है
मेरे विचार तक अराजक हैं
यह सब इसलिए
कि मैं उनकी ताल पर नहीं गाता
न उनकी पालकी हूँ उठता।

मुझे षड्यंत्रकारी कहने के लिए
संविधान उनका मापदंड है
जैसे सभी धर्मों कि मूढ़ता एक जैसी
रक्षा करती है वर्गहितों की ।

लेकिन मेरा गीत
श्रमिक जीवन का सौन्दर्य है
नही है कोई राग वह
शासन और धर्म का ।

बूँद-बूँद करके
मैं अपना रक्तबीज छितराऊँगा
देश को मुक्त कराऊँगा
कैदी हो सकता हूँ मैं
पर गुलाम नहीं हूँ।

यदि टूट भी जाऊं
कर दिया जाऊं टुकड़े टुकड़े भी
तो भी मैं फ़िर जनम लूँगा
फ़िर-फ़िर जनम लूँगा
समुन्द्र की लहर की तरह।

चेराबंदा राजू
(हैदराबाद जेल)